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कुंडली में चरित्रहीनता वेश्यावृत्ति व्यभिचार के योग

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कुंडली में चरित्रहीनता वेश्यावृत्ति व्यभिचार के योग :-

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कुंडली के ज्योतिषीय विश्लेषण से न केवल उसके आचरण और स्वभाव का पता चलता है, बल्कि उसके चारित्रिक भटकाव या बदलाव की भी भविष्यवाणी की जा सकती है।

खासकर किसी स्त्री की काम वासना, चारित्रहीनता, व्यभिचार या वेश्यावृति संबंधी तमाम तरह की जानकारियां कुंडली के ग्रह योगों से पता चलता है। एक नजर कुछ वैसे ग्रहयोग के बारे में जानते हैं, जिनकी वजह से स्त्री के चारित्रिक पतन की आशंका बनती है।

कुंडली में चरित्रहीनता वेश्यावृत्ति व्यभिचार के योग
कुंडली में चरित्रहीनता वेश्यावृत्ति व्यभिचार के योग
ज्योतिष की मान्यता के अनुसार इस संबंध में स्त्री की कुंडली के सातवें, आठवें और दसवें भाव के आधार पर शुक्र, मंगल और चंद्रमा के दोषपूर्ण योग का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।

कुंडली में चरित्रहीनता वेश्यावृत्ति व्यभिचार के योग

क्योंकि इन भावों में बुध या शुक्र के होने की स्थिति में स्त्री के गैरपुरुष संबंध बन सकते हैं, या फिर वह वेश्यावृति में जा सकती है। इसके महत्वपूर्ण ज्योतिषीय तथ्य इस प्रकार हैंः-

शुक्र ग्रहः ज्योतिष में व्यक्ति में वासना और भोग-विलास का कारण शुक्र ग्रह को माना गया है। इसके अत्यधिक प्रभाव से उसमें विलासिता और कामुकता के गुण आ जाते हैं। यह मंगल और चंद्र के साथ मिलकर उत्तेजना बढ़ा देता है। किसी स्त्री की जन्म कुंडली में यदि शुक्र ग्रह चंद्रमा के साथ नीच राशि में स्थित हो, तो यह क्रूर माने गए मंगल ग्रह के साथ मिलकर उसे चारिहीनता की ओर ले जाता है। अर्थात मंगल शुक्र ग्रह को अपने प्रभाव में लेने के बाद उस स्त्री को यौन आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बाध्य करता है और वह चारित्रिक सीमा को बेहिचक लांघ जाती है।

नीच का शुक्रः यदि किसी की कुंडली में शुक्र ग्रह मेष, सिंह, धनु, वृश्चिक में हो या फिर वह नीच के भाव में रहे तथा मंगल, राहु, केतु या शनि के साथ योग करे तो उस व्यक्ति में अत्यधिक यौन-कामना की इच्छा जागृत हो जाती है। वैसी स्त्री वैवाहिक संबंध की मार्यादा को तोड़ देती है।

राहु-केतुः कुंडली में शुक्र-मंगल का योग यानि कि मंगल का शुक्र की राशि में स्थित होने के साथ-साथ यदि उनका योग राहू-केतु के लग्न या लग्नेश के साथ हो जाता है तब वह वासनपूर्ति के लिए अपराध करने तक से नहीं चूकता है। ऐसी स्त्री कई के साथ शारीरिक संबंध बनाने में जरा भी नहीं हिचकती है। उनपर चरित्रहीनता का आरोप लग जाता है, या फिर वह वेश्यवृति के दलदल में धंस जाती है।
कुंडली में चरित्रहीनता वेश्यावृत्ति व्यभिचार के योग

चंद्रमा और शुक्रः जिस किसी स्त्री की कुंडल में तुला राशि के साथ चंद्रमा और शुक्र के योग हो जाते हैं उसकी काम वासना कई गुणा बढ़ जाती है। यह योग अगर राहू या मंगल से प्रभावित हो जाए तब वह स्त्री काम-वासना पूर्ति के लिए किसी भी हद तक चली जाती है।

नवांश कुंडलीः जिस किसी भी स्त्री की नवांश कुंडली में शनि शुक्र की राशि में और शुक्र शनि की राशि में रहे तो उसकी यौन आकांक्षा बढ़ जाती है। इसी तरह से यदि शुक्र मंगल की राशि में और मंगल शुक्र की राशि में रहे तब वैसी स्त्री परपुरुष से संबंध बनाने का मौका निकाल ही लेती है।

बुध और शुक्रः स्त्री की कुंडली के अनुसार उसके सातवें भाव में बुध के साथ शुक्र के आ मिलने से वह गुप्त अनैतिक तरीके से काम-वसना पूर्ति करती है। इसके लिए चारित्रिक लांछन की चिंता से बेखबर किसी भी हद तक जा सकती है।
कुंडली में चरित्रहीनता वेश्यावृत्ति व्यभिचार के योग

शुक्र और मंगलः जिस किसी स्त्री की कुंडली के तीसरे भाव में शुक्र स्थित हो और वह मंगल से प्रभावित हो जाए, तथा छठे भाव में मंगल की राशि होने के साथ-साथ चंद्रमा बारहवें स्थान पर रहे तब उसमें यौनाचार की चरित्रहीनता आ जाती है। कुंडली के सप्तम भाव में मंगल चारित्रिक दोष पैदा करने वाला साबित होता है। इस दोष से ग्रसित स्त्री या पुरुष को नाजायज संबंध रखने वाले जीवनसाथी मिलने के योग बन बन जाते हैं।

शनि-मंगलः स्त्री की कुंडली में यदि शनि लग्न में स्थित हो तो उसमें वासन की अधिकता रहती है। शनि के साथ मंगल के योग होने पर उसकी यौनआकांक्षा प्रबल हो जाती है। शनि का दशवें स्थान पर होना भी स्त्री की कामुकता को बढ़ता है, जबकि शनि के चैथे भाव में होने पर वह यौनाचार करने के लिए बाध्य हो जाती है। शनि शुक्र, मंगल और चंद्रमा के साथ योग कर व्यक्ति की कामुकता को काफी बड़ा कर देता है।

चंद्रमाः कुंडली में चंद्रमा के विभिन्न स्थान में होने से वह व्यक्ति की कमुकता को प्रभावित करता है। विशेषकर यदि चंद्रमा स्त्री की कुंडली के अनुसार बारहवें भाव में मीन राशि में हो, तब वैसी स्त्री कई पुरुषों के साथ यौन संबंध बना लेती है। चंद्रमा के नौंवे भाव मंे होने की स्थिति में स्त्री व्यभिचार करने के लिए प्रेरित हो जाती है। यानि कि यदि स्त्री की कुंडली मंे यदि चंद्रमा उच्च का हो तब उसे प्रेम-प्रसंग में सफलता मिलती है, लेकिन नीच की स्थिति में होने और दूसरे ग्रहों के शुभ नहीं हाने पर वह देह-व्यापर की ओर रूख कर सकती है।
कुंडली में चरित्रहीनता वेश्यावृत्ति व्यभिचार के योग

सप्तम भाव में चंद्रमाः जन्म कुंडली के सप्तम भाव में चंद्रमा होने और उसके शनि के साथ योग बनाने की स्थिति में वैसी स्त्री अपने जीवनसाथी के साथ प्रेम नहीं कायम कर पाती है। उसके प्रेम-संबंध दूसरे पुरुष के साथ बना रहता है।

शनि और राहुः ज्योतिष के अनुसार इन दोनों ग्रहों का योग अच्छा नहीं माना जाता है। खासकर किसी स्त्री की जन्मकुंडली के लिए तो बिल्कुल ही नहीं। इस योग के कारण प्रभावित स्त्री वेश्यावृति के प्रभाव में आ सकती है और कष्टमय जीवन गुजारती है।

सप्तम में राहुः कुंडली के सप्तम भाव में राहु होने पर स्त्री विवाह के बाद अवैध संबंध बना लेती है। यहां तक कि इस दोष के कारण उसे जीवनसाथी भी कई के साथ अवैध संबंध कायम रखने वाला मिलता है। ऐसे लोग दांपत्य जीवन के प्रति लापरवाह होते हैं।
कुंडली में चरित्रहीनता वेश्यावृत्ति व्यभिचार के योग

सूर्यः जन्म कुंडली का सप्तम भाव व्यक्ति की कामुकता और विवाहेत्तर संबंध को दर्शाता है। ऐसे में यदि स्त्री की कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो उसके नाजायज संबंध बन सकते हैं। या फिर उसे अनैतिक संबंध बनाने वाला जीवनसाथी मिल सकता है।

स्त्री- पुरुषों के अवैध संबंध बनने का रहस्य :-

अवैध-संबंध हिन्दुस्तान का वो मीठा जहर है जो शरीर में खुल कर आत्मा का भी अपवित्र कर देता है अवैध संबंध का तात्पर्य सिर्फ शरीर से ही नहीं अपितु मन, वचन, कर्म तथा रक्त के द्वारा सम्पूर्ण भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल को दूषित करने के साथ-साथ बच्चों एवम् परिवार की नज़रों में मनुष्यों को तुच्छ बनाकर घृणित कर्म मार्ग ला कर खड़ा करता हैं। अवैध संबंधों के लिए कोई एक दोषी नहीं होता, स्त्री और पुरूष दोनों से मिलकर ही अवैध संबंध का निर्माण होता है। विवाहित या अविवाहित कोई भी पुरूष अथवा स्त्री हो, जो अपने जीवनसाथी के अलावा किसी अन्य से यौन संबंध स्थापित करें तो उसकी गिनती अवैध संबंधों में होती है इसके लिए केवल स्त्री ही जिम्मेदार नहीं बल्कि इसमें पुरूष वर्ग का विशेष हाथ होता है किन्तु पुरूष के अवैध संबंध के लिए स्त्री ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इस सत्य को स्वीकार करना आसान नहीं है क्योंकि सत्य बड़ा कठोर होता है। पुरूष जब किसी अन्य स्त्री से अवैध संबंध स्थापित करने के लिए छल, दुष्टपूर्ण नीतियों और कुटिलताओं से स्त्री को आकर्षित करने की चेष्टा करता हैं तो स्त्री अगर उस समय चाहे तो कोई भी संसार का पुरूष उसको उसके मन के विरूद्ध किसी अन्य मार्ग पर नहीं ले जा सकता, ये शक्ति नारी जाति में स्वतः व्याप्त है किन्तु इसको समझना या ना समझना ये भिन्न-भिन्न स्त्रियों पर निर्भर करती हैं फिर भी कई बार इस तरह की परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं कि पुरूष किसी दूसरी स्त्री के सम्पर्क में चला जाता है या स्त्री किसी अन्य पुरूष का साथ चाहने लगती है इसका सीधा संबंध पति अथवा पत्नी की कामवासना, प्यार और सांसारिक वस्तुओं को प्राप्त करने से होता है।

अवैध संबंध का सीधा अर्थ यौन इच्छा से है, पति द्वारा प्यार- प्रेम, मान और सम्मान न मिलने के कारण भी कई स्त्रियां किसी परपुरूष का संग चाहती है ताकि वो अपने मन में दबी भावनाओं को प्रकट कर सके, इसी अवसर का लाभ उठाकर कई दुष्ट प्रवृत्ति के पुरूष उसके स्त्रीतत्व को भंग कर अवैध संबंध बना लेते हैं। कामवासना भी शरीर और जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है इसकी तृप्ति करना भी परमावश्यक है किन्तु वासना की तृप्ति के साथ प्रेम का रस मिला देने से वो ‘योग’ बनता है, जिससे सृष्टि का निर्माण होता है इसलिए पति अथवा पत्नी दोनों को अपने जीवनसाथी के साथ दाम्पत्य जीवन में वासना के साथ प्रेम का निर्माण भी करना चाहिए, एक दूसरे की वेदना और भावना को समझना चाहिए। पति अथवा पत्नी दोनों में से कोई भी एक यौनक्रिया में सफल ना भी हो, तो भी अगर दोनों में प्रेम है तो उनका शुद्ध प्रेम कामवासना पर विजय प्राप्त कर अवैध संबंध जैसे जहर पर अंकुश लगा सकता है।

ज्योतिष शास्त्र में अवैध संबंध जैसे विषय पर भी स्पष्टता मिलती है चन्द्रमा मन का कारक होता है और कामवासना मन से जागती है। लग्न व्यक्ति स्वयं होता है पंचम भाव प्रेमिका और सप्तम भाव पत्नी का होता है एवं शुक्र भोग विलास का कारक है, शनि, राहू, मंगल और पंचम भाव, पंचमेश, द्वादश और द्वादशेश का आपस में संबंध होना जातक के विवाह पूर्व एवं पश्चात् अवैध संबंध स्थापित करवाते हैं। जन्म कुंडली में सप्तम भाव पर शनि की चन्द्रमा के साथ युति जहां जातक को मानसिक रूप से पीडि़त करती है वहीं प्रेम संबंध भी करवाती है। कुछ ऐसे ज्योतिषीय योगों का उल्लेख कर रहा हूँ, जिनके जन्म कुंडली में होने से, जातक का अवैध संबंध और कामुक होने का संकेत मिलता हैः

– जन्म कुंडली में शनि और शुक्र की युति, वैवाहिक जीवन में किसी अन्य का आना बताता है।

– पंचम भाव में शनि, शुक्र और मंगल की युति अवैध संबंध का निर्माण करती है।

– मेष या वृश्चिक राशि में मंगल के साथ शुक्र के होने से पराई स्त्री से घनिष्ठा बनती है।

– जन्म कुंडली में चन्द्रमा से द्वितीय स्थान में शुक्र हो तो ‘सुनफा योग’ बनता है ऐसा जातक भौतिक सुखों की प्राप्ति करता हैं उसका सौन्दर्य आकर्षक होता है अन्य स्त्रियों से शारीरिक संबंध की प्रबल संभवना होती है।

– द्वितीय, छठे और सप्तम भाव के किसी भी स्वामी के साथ शुक्र की युति लग्न में होने से जातक का चरित्र संदेहप्रस्त होता है।

– सूर्य और शुक्र की युति मीन लग्न में होने से जातक को अत्यंत कामुक बनाती है उसका अवैध संबंध बनता है तथा ऐसे जातक की कामवासना की तृप्ति शीघ्र नहीं होती।

– बुध और शुक्र की युति यदि सप्तम भाव में हो तो जातक अवैध संबंधों के लिए नूतन तरीके अपनाता हैं।

– शनि, मंगल और शुक्र का काम वासना से घनिष्ठ संबंध है यदि जन्म कुंडली में शनि और मंगल की युति सप्तम भाव पर हो तो जातक समलिंगी होता है। ये ही युति यदि अष्टम, नवम, द्वादश भाव पर हो तो जातक का अपने बड़ों से अवैध संबंध होता हैं।

– मंगल और राहू की युति अथवा दृष्टि शुक्र पर हो तो जातक कामुक होता है एवम् अवैध संबंध बनाने के लिए उसका मन भटकता है।

– लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम भाव में गुरू पर मंगल शुक्र का प्रभाव और चन्द्रमा पर राहू का प्रभाव हो तो व्यक्ति अवैध संबंध बनाने के लिए सभी सीमाओं का उल्लघंन कर देता है।

– लग्न में शनि का होना जातक को कामवासना अधिक देता है, पंचम भाव में शनि होने से अपने से बड़ी स्त्रियाें के प्रति अवैध संबंध बनाने के लिए जातक को आकर्षित करता है।

– शनि का सप्तम भाव में चन्द्रमा के साथ होना और मंगल की दृष्टि पड़ने से जातक वेश्यागामी होता है इसी योग में अगर शुक्र का संबंध दृष्टि अथवा युति से बन जाये तो अवैध संबंध निश्चित हो जाता है।

– चन्द्रमा जन्म कुंडली में कहीं पर भी नीच को होकर बैठा हो और उस पर पाप प्रभाव हो तो जातक अपने नौकर/नौकरानी से अवैध संबंध बनवाता है यहीं चन्द्रमा अगर दूषित होकर नवम भाव में स्थित हो तो जातक अपने गुरू अथवा अपने से बड़ों के साथ अवैध संबंध बनाता है।

– मंगल रक्त को दर्शता है जन्म कुंडली में किसी पाप ग्रह के साथ मंगल की युति सप्तम भाव में हो या सूर्य सप्तम में और मंगल चतुर्थ स्थान में हो अथवा चतुर्थ भाव में राहू हो तो व्यक्ति कामुकता में अंधा होकर पशु समान कार्य करता है।

– राहू का अष्टम भाव में होना जातक का अवैध संबंध कराता है।

– तुला राशि में चार ग्रह एक साथ होने से जातक के परिवार में कलेश उत्पन्न करते है जिसके कारण जातक बाहर अवैध संबंध बनाता है।

– शनि का दशम भाव में होना जातक के मन में विरोधाभास उत्पन्न करता है। शुक्र और मंगल की युति जन्म कुंडली में कहीं पर भी हो एवं शनि दशम भाव में हो तो जातक ज्ञानवान भी होता है एवं काम वासना और अवैध संबंधों को गंभीरता से लेता है उसका मन स्थिर नहीं रह पाता, कभी ज्ञानी बन जाता है कभी अवैध संबंधों का दास।

– बुध और शनि का संबंध सप्तम भाव से हो तो ऐसे जातक यौनक्रियाओं में नीरस एवं अयोग्य होते हैं।

– सूर्य का सप्तम भाव में होना जातक के वैवाहिक जीवन में कलेश उत्पन्न करता है, इससे परेशान होकर जातक अवैध संबंध बनाता है।

– सप्तम भाव में राहू और शुक्र हो अथवा राहू और चन्द्रमा की युति हो तथा गुरू द्वादश भाव में स्थित हो तो विवाह पश्चात् कार्यालयों में ही अवैध-संबंध बनते हैं।

– बुध और शनि की युति यदि द्वादश भाव में हो तो जातक शीघ्रपतन का रोगी बन जाता है और इसी योग में यदि लग्न, सप्तम और अष्टम भाव में राहू हो तो व्यक्ति अपनी जवानी को स्वयं नष्ट करता है एवं उसका जीवनसाथी किसी अन्य से शरीरिक तृप्ति लेता है।

– मंगल जोश और शुक्र भोग एवं द्वादश भाव अवैध संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है यदि मंगल, शुक्र और द्वादश भाव का स्वामी का संबंध सप्तम भाव से हो तो व्यक्ति लंपट होता है एवं कई स्त्रियों से उसका अवैध संबंध होता है। इन्हीं तीनों का योग चतुर्थ या द्वादश भाव में हो तो जातक अत्यंत कामी होता है और अपने जीवन में मर्यादा त्याग कर अधिक अवैध संबंध बनाता है।

– लग्नेश एकादश में स्थित हो और उस पर पाप प्रभाव हो तो जातक अप्राकृतिक यौनक्रियाएं की तृप्ति हेतु अवैध संबंध बनाता है।

जन्म कुंडली में चन्द्रमा, मंगल, शुक्र, राहू, सप्तम भाव, पंचम भाव और द्वादश भाव अवैध संबंध का निर्माण करते है। मंगल शारीरिक शक्ति का कारक है तथा विवाह के पश्चात् जो संबंध बनते है उसको भी दर्शाता है। शुक्र तो स्वयं भोग विलास है, विपरित लिंग व अन्यों को आकर्षित कराता है, कामेच्छा जगाता है, रोमांस देता है। शनि वैराग्य भी देता है, आलोचना और योगों में अवैध संबंधों के कारक का भी कार्य भी करता है फिर भी अवैध संबंधों के योगों को देखने से पूर्व जन्म कुंडली में शुभ ग्रहों, और अन्यों योगों का भी निरीक्षण करना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसा होता है जन्म कुंडली में अवैध संबंध योग बन रहा है किन्तु वहीं पर जन्म कुंडली मेें पतिव्रता/एक पत्नीव्रत का भी योग है इन दोनों योगों में से जो योग बलवान होगा जातक वैसा ही होगा। शुक्र और सूर्य की युति लग्न में जहां व्यक्ति को व्याभिचार देती है वहीं किसी शुभ ग्रह की युति अथवा दृष्टि उसके व्याभिचार योग को नष्ट कर देती है। ऐसे ही मंगल और शुक्र की युति पंचम भाव में अवैध
संबंध के स्थान पर प्रेम भी देती है इसलिए कुंडली का पूर्ण निरीक्षण करने के पश्चात् ही फलादेश करना चाहिए।

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